गेहूँ की यह नई किस्म कम पानी में भी देगी बंपर पैदावार, उत्पादन देख लोगो को नहीं हो रहा यकीन

भारतीय कृषि विज्ञानियों ने गेहूँ की तीन नई वैराइटियों को बनाया है जो बेहतर उत्पादन और बीमारियों से लड़ने वाली हैं। यह उन्नत गेहूँ की नई वाणिज्यिक उम्मीद है, जो किसानों को अधिक उपज और अधिक मुनाफा दे सकती है।

गेहूँ की प्रतिक्रिया और जलवायु बदलाव

धरती का तापमान बदलने से गेहूँ उत्पादन भी प्रभावित होता है। उन्नत उत्पादन और तापमान बदलाव का सही तरीके से सामना करने के लिए, वैज्ञानिकों ने इस परिस्थिति में हीट प्रतिरोधी गेहूँ की वैराइटियों का निर्माण किया है।

गेहूँ की तीन विकसित किस्में

DBW-371 करण वृंदा

यह गेहूँ की वैराइटी सिंचाई वाले क्षेत्रों में अगेती बुआई के लिए बनाया गया है। औसत हेक्टेयर उपज 75.1 क्विंटल और 87.1 क्विंटल उत्पादन क्षमता है। इसके पौधों की ऊँचाई 100 सेमी होती है और 150 दिन तक पकती है। यह लौह तत्व में 44.9 पीपीएम, जिंक में 39.9 पीपीएम और वैराइटी प्रोटीन में 12.2% है।

DBW-370 करण वैदेही

इस वैराइटी की औसत उपज 74.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और उत्पादन क्षमता 86.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। पौधे 99 सेमी ऊँचे हैं और 151 दिन पकते हैं। इस वैराइटी में 12.0% प्रोटीन है, जबकि जिंक 37.8 पीपीएम और लौह तत्व 37.9 पीपीएम है।

DBW-372 करण वरुणा

इस वैराइटी की औसत उपज 75.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और उत्पादन 84.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। पौधे 96 सेमी ऊँचे हैं और 151 दिन तक पकते हैं। इस वैराइटी में जिंक 40.8 पीपीएम, लौह तत्व 37.7 पीपीएम और प्रोटीन 12.2% है।

किसानों के लिए लाभ

ये वैराइटियाँ उन्नत उत्पादन और तापमान बदलाव से बचती हैं, साथ ही सभी प्रमुख रोगजनक प्रजातियों से भी सुरक्षित हैं। DBW-370 और DBW-372 किसानों को करनाल बंट रोग से अधिक सुरक्षित बनाते हैं।

उपयोग क्षेत्र में

उत्तरी गंगा-सिंधु क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कठुआ, हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला और पोंटा घाटी) में ये वैराइटियाँ फायदेमंद हैं।

 

 

 

 

 

 

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